सरकार ने गाँव में शौचालय कि व्यस्था के सुधारने के लिए अभूतपूर्व कदम उठायें हैं, जगह -जगह दीवाल पर और मीडिया के माध्यम से गाँव कि जनता को जागरूक भी किया जाता रहा हैं कि , अपने घर या आस-पास शौचालय का निर्माण कराएँ जिससे कि महिलावो को परेशानी ना हो.
गाँव में शौचालय के निर्माण में होने वाले खर्च में प्रदेश कि सरकार भी आर्थिक रूप से मदद करती हैं. जिससे कि गाँव के अन्दर खास कर के महिलावो को आसानी हो और खुले में ना जाना पड़े.
लेकिन एक दूसरा पहलु ये हैं कि ये शौचालय जमीन के अन्दर पीने के पानी को प्रदूषित कर रहे हैं. क्योंकि जो शौचालय गाँव में बनाये जा रहे हैं , उनमे लगभग पांच से आठ फुट तक का गहरा गड्ढा ( छोटा सा कुंवा ) बनाया जाता हैं जिसकी दिवाले झरोके दार होती हैं और नीचे का हिस्सा कच्चा होता हैं . उसकी वजह ये होती हैं कि शौचालय का गड्ढा जल्दी ना भरे और उसके अन्दर का पानी मिटटी सोख ले.
मिटटी पानी सोखती तो हैं , मगर वो पानी रिस कर के और नीचे पीने के पानी में मिल जाता हैं. और शौचालय के आस पास जो भी हैण्ड पम्प होते हैं उनसे ये पानी बाहर आता हैं . क्योंकि मिटटी से रिस करके गन्दा पानी पीने के पानी में मिलता हैं , इसीलिए ये हमेशा साफ दीखता हैं.
और नतीजा नई - नई बीमारी........................................................................