भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति आज किसी दुसरे देश में ना तो प्रधान मंत्री हैं और ना ही राष्ट्रपति, दूसरी बात ये हैं कि जिस पद पर सोनिया आसीन हैं , उनसे ज्यादा विद्वान नेता और भी हैं इंतजार में कि कब उन्हें मौका मिले. एक दो को छोड़ दे तो आज तक कांग्रेस ने सिर्फ नेहरू के वन्सजो को ही प्रधान मंत्री बनने का मौका दिया हैं, और आगे भी सारे कांग्रेसी राहुल कि तरफ नज़र गडाए हुए हैं. बहुत से ऐसे सवाल हैं जो सोनिया गाँधी को कटघरे में खड़े करते हैं.
मसलन कि बोफोर्स घोटाले का मुख्या आरोपी का छुट जाना, संसद में हुए हमले के आरोपी को सुनाई गई फांसी कि सजा पर अमल ना होना, हिंदुस्तान में रह करके सिर्फ मुसलमानों का साथ देना , हिन्दू विरोधी बात करना, राम सेतु को ये कहना कि ये सेतु नहीं हैं बल्कि रेत का ढेर जमा हुआ हैं.
आज हमारे देश का सौभाग्य हैं कि हमें एक पढ़ा लिखा और समझदार प्रधान मंत्री मिला हुआ हैं, सब तरह के घोटालो से दूर, एक साफ सुथरी तस्वीर के रूप में श्रीमान मनमोहन सिंह. लेकिन वो भी सोनिया नामक बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं, और अपना सारा का सारा ज्ञान सोनिया जी कि जी हजुरी में खर्च कर रहे हैं. वो अलग बात हैं कि ज्ञान खर्च करने से बढ़ता हैं.
जनता का क्या वो तो एक भीड़ हैं , और वो भी बिलकुल भेड़ कि तरह. बचपन में एक कहावत सुनी थी कि एक भेड़ के पीछे सारी भेड़ चलती हैं, और अगर रस्ते में कुआँ आ जाये और अगर एक भी भेड़ गिर जाये तो पीछे -पीछे सारी भेड़े कुंए में गिर जाती हैं.
सोनिया के नाम पर मर- मिटने वाले ना तो कोई बड़ा नेता हैं और ना ही कोई विधायक और ना ही संसद. ये बेचारी भीड़ (जनता ) हैं जो अपने
गली मोहल्ले के छुट भैये नेता के कहने पर हंगामा करने चले आते हैं. और ऐसा सिर्फ सोनिया जी के लिए ही नहीं बल्कि हर उस पार्टी के प्रमुख व्यक्ति के लिए हैं. चाहे वो लालू यादव जी कि भीड़ हो या मायावती जी कि या लालकृष्ण अडवाणी कि या ममता जी कि. सब बेवकूफ हो चुकी भीड़ का फायदा उठाते हैं.